Monday, 13 February 2012

Mukhaute....... Disguise






    










                    मुखौटे

इंसान सोचते कुछ और है पर कहते कुछ और है 
         कहते कुछ और है पर चाहते कुछ और है 

         एहसास होता है कुछ इजहार करते है कुछ
         चेहरा छुपाते है कुछ मुखौटे लगाते है कुछ

         मुखौटे कुछ ऊँचे इतने की खींच सकते नही 
         स्वाभिमान कुछ ऊँचा इतना की यूँ रुक सकते नही 

कोई कैसे यूँ बेनकाब होगा
         कोई कैसे यूँ बदनाम होगा
न जाने कितने नकाब उतरेंगे 
         न जाने कितने और चढ़ेंगे

ये मुखौटे भरी दुनिया है
         मुखौटे में दब कर रह जायेगी
सच से भरी ज़िन्दगी भी
         झूठ की मोहताज हो जायेगी

पर दिन क्या वो एक आएगा??
या फिर स्वप्न बन ही रह जाएगा??
भोर होगी ज़िन्दगी कभी??
या साँझ में ही ढल जायेगी??
मिलेगा कारवां राहों में ??
या सफ़र ये तनहा ही कट जाएगा??

जब दिन वो एक आएगा,
        हर कथ्य को सत्य मिल जाएगा,
        हर राही मंजिल पायेगा,
        हर चेहरा सामने आएगा,
        हर नकाब उतर जाएगा


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देवश्री

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