आज जब कलम उठाई लिखने को
हज़ार भंवर थे मन में पर शब्द नही थे लिखने को
पल भर सोचा, बिखरी हुई यादों को समेटा,
कुछ अनकही बातों को समझा .
कुछ चलचित्र सजीव हुए आँखों में
कुछ पात्र नज़र आये ज़िन्दगी में.
ओढ़े हुए थे चादर सच्चाई की,
पर कपट छुपा था दिल की गहराई में.
उन्हें मित्र बनाए बैठे थे,
वो षड़यंत्र रचाए बैठे थे.
हम सेज सजाये बैठे थे,
वो चिता बनाये बैठे थे.
कुछ समझ नही हम पाए थे,
वो क्या क्या अंजाम संजोय बैठे थे.
टूट गया हर रिश्ता था,
बिखर गयी हर चाह थी.
जब छिन गया वो नकाब था,
जब उतर गयी वो चादर थी.
मन ज्वालामुखी सा उबल रहा था,
और हृदय सूर्य सा जल रहा था.
दिल को बार बार बहला रहे थे,
मन को बार बार समझा रहे थे.
हर प्रयास असफल हो रहा था,
हर कोशिशें नाकाम दिख रहीं थी.
किसी चेहरे पर सद्भाव नही अब दिखता है,
किसी और पर विशवास नही अब होता है,
बस झूट दिखाई पड़ता है,
बस कपट दिखाई पड़ता है.
हे जगदीश, मुझे तुम ज्ञान दो,
इस जीवन का तुम सार दो,
मै शरण तुम्हारी आया हुं.
मै शरण तुम्हारी आया हुं..
- देवश्री
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