रंगमंच
क्यूँ दिल नहीं अब धड़कता है,
क्यूँ सांस नही अब चलती है |
क्यूँ नज़र नही अब आता है,
और क्यूँ एहसास नहीं अब होता है |
जीवन एक रंगमंच सा दिखता है,
लम्हा - लम्हा कुछ पूर्व लिखित सा लगता है |
धरम - करम सब मिथ्या लगने लगता है,
कतरा - कतरा सब निर्देशित सा लगता है |
सब रंगमंच के पात्र हैं ,
वो आज नही कल चले जायेंगे |
जिनका जितना जितना पात्र है,
वो पात्र निभा कर चले जायेंगे |
क्या सच क्या झूठ सब ,
बेमानी सा लगता है |
सब पटकथा का भाग है ,
बस कहानी सा लगता है |
चेहरों में कुछ असल भाव नही दिखते हैं ,
मन में क्यूँ सच्चाई नही दिखती है |
पंछी मन क्यूँ उड़ नही पाता ,
सुनेहेरे पिंजरे को क्यूँ तोड़ नही पता |
क्यूँ डरता है आजादी से ,
उसे कैद का आराम क्यूँ भाता है |
क्यूँ नही तू तोड़ता इन बेड़ियों को ,
क्यूँ जकड़ा है तू इन जंजीरों में |
चल उठ अब ,
बेड़ियों को तोड़,
साहस को जोड़,
जीवन को मोड़,
फैला अपने पंख ,
और उड़ चल क्षितिज की ओर,
इन लिखित पात्रों से दूर ,
बस क्षितिज की ओर ..............
क्यूँ सांस नही अब चलती है |
क्यूँ नज़र नही अब आता है,
और क्यूँ एहसास नहीं अब होता है |
जीवन एक रंगमंच सा दिखता है,
लम्हा - लम्हा कुछ पूर्व लिखित सा लगता है |
धरम - करम सब मिथ्या लगने लगता है,
कतरा - कतरा सब निर्देशित सा लगता है |
सब रंगमंच के पात्र हैं ,
वो आज नही कल चले जायेंगे |
जिनका जितना जितना पात्र है,
वो पात्र निभा कर चले जायेंगे |
क्या सच क्या झूठ सब ,
बेमानी सा लगता है |
सब पटकथा का भाग है ,
बस कहानी सा लगता है |
चेहरों में कुछ असल भाव नही दिखते हैं ,
मन में क्यूँ सच्चाई नही दिखती है |
पंछी मन क्यूँ उड़ नही पाता ,
सुनेहेरे पिंजरे को क्यूँ तोड़ नही पता |
क्यूँ डरता है आजादी से ,
उसे कैद का आराम क्यूँ भाता है |
क्यूँ नही तू तोड़ता इन बेड़ियों को ,
क्यूँ जकड़ा है तू इन जंजीरों में |
चल उठ अब ,
बेड़ियों को तोड़,
साहस को जोड़,
जीवन को मोड़,
फैला अपने पंख ,
और उड़ चल क्षितिज की ओर,
इन लिखित पात्रों से दूर ,
बस क्षितिज की ओर ..............
--
देवश्री
shaabaash!!! yeh pahli hai ya aur bhi hain?? my suggestion before publishing them take reviews n suggestion frm those who have literary exposure n orientation.. god bless!!!
ReplyDeleteThanks for the comment. I have been writing poems for past 8 years. There are around 9 more published on this blog itself. There are many that i have lost. By the way, thanks for the suggestion. Could you please let me know your identity I am not able to figure it out from the username.
Deleteat times nothing can be more comforting than thoughts being expressed in simple words... nice poem.. especially the last stanza :)
ReplyDeletethanks bhai :) good to know you liked it
Deletenice one devesh sir ... i liked it :):)
ReplyDeletethanks Vikas :):)
Deletewhat an awesome one.... one of all your finest work....
ReplyDeleteThanks dear :) It is always good to get such comments from one of the finest poetess' I knw :)
Delete:)
Deletepure awesomeness :) loved it :)
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