इंसान सोचते कुछ और है पर कहते कुछ और है
कहते कुछ और है पर चाहते कुछ और है
एहसास होता है कुछ इजहार करते है कुछ
चेहरा छुपाते है कुछ मुखौटे लगाते है कुछ
मुखौटे कुछ ऊँचे इतने की खींच सकते नही
स्वाभिमान कुछ ऊँचा इतना की यूँ रुक सकते नही
कोई कैसे यूँ बेनकाब होगा
कोई कैसे यूँ बदनाम होगा
न जाने कितने नकाब उतरेंगे
न जाने कितने और चढ़ेंगे
ये मुखौटे भरी दुनिया है
मुखौटे में दब कर रह जायेगी
सच से भरी ज़िन्दगी भी
झूठ की मोहताज हो जायेगी
पर दिन क्या वो एक आएगा??
या फिर स्वप्न बन ही रह जाएगा??
भोर होगी ज़िन्दगी कभी??
या साँझ में ही ढल जायेगी??
मिलेगा कारवां राहों में ??
या सफ़र ये तनहा ही कट जाएगा??
हर कथ्य को सत्य मिल जाएगा,
हर राही मंजिल पायेगा,
हर चेहरा सामने आएगा,
हर नकाब उतर जाएगा
--
देवश्री
Nice one dude!!
ReplyDeleteThanks a lot.........................:):)
Delete